करणी माता के दरबार से मोदी का मिशन सुरक्षा और विकास शुरू, जानिए माता की महिमा

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

वीर भूमि पर खड़े होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज एक बार फिर भारत की सैन्य और कूटनीतिक शक्ति का प्रदर्शन करेंगे। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद, मोदी बीकानेर से पाकिस्तान को दो टूक संदेश देंगे कि अब भारत आतंक का सीधा और दस गुना जवाब देने में सक्षम है।

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विकास की नई रफ्तार

प्रधानमंत्री 26,000 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करेंगे। इनमें बीकानेर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन, देशनोक रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास, और राजस्थान के विभिन्न जिलों में जल, ऊर्जा और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं।

देशनोक से आध्यात्मिक और सामरिक शक्ति का प्रदर्शन

देशनोक के करणी माता मंदिर में दर्शन कर प्रधानमंत्री मोदी आध्यात्मिक शक्ति का संदेश देंगे। यह वही स्थान है जिसे पाकिस्तान ने टारगेट करने की कोशिश की थी, लेकिन स्थानीय आस्था और सुरक्षा बलों की मुस्तैदी से वह विफल रहा।

सरहद के सिपाहियों को सलाम

1070 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात सैनिकों को प्रधानमंत्री मोदी सलामी देंगे और देश की जनता को भरोसा दिलाएंगे कि भारत की सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं।

तपती गर्मी में राष्ट्रभक्ति की लहर

राजस्थान की झुलसाती गर्मी के बीच हजारों की संख्या में जुटी भीड़ यह साबित कर रही है कि देशभक्ति किसी मौसम की मोहताज नहीं होती। यह महज एक राजनीतिक रैली नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और गर्व का उत्सव है।

स्वास्थ्य और जल परियोजनाओं की सौगात

राजसमंद, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा और धौलपुर में नर्सिंग कॉलेज, पाली जिले में शहरी जल परियोजनाएं, और झुंझुनूं में फ्लोरोसिस शमन परियोजना से राज्य के स्वास्थ्य और जल संसाधनों को नई ताकत मिलेगी।

बीकानेर से पूरी दुनिया को संदेश

प्रधानमंत्री का यह दौरा केवल एक प्रशासनिक यात्रा नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली संदेश है — भारत अब सहन नहीं करता, मुंहतोड़ जवाब देता है। जब मोदी बीकानेर से हुंकार भरेंगे, तो सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, पूरा विश्व भारत की शक्ति को महसूस करेगा।

करणी माता मंदिर: आस्था, इतिहास और चमत्कारों की अद्भुत गाथा

करणी माता कौन थीं?

करणी माता को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है। उनका जन्म विक्रमी संवत 1444 (1387 ईस्वी) में मारवाड़ के सुवाप गांव में हुआ था। बचपन से ही उनमें अलौकिक शक्तियों के दर्शन होने लगे थे। लोक मान्यता है कि उन्होंने अपनी बुआ की टेढ़ी उंगली ठीक कर दी थी, जिससे उन्हें “करणी” नाम मिला।

वे एक चारण परिवार से थीं और बीकानेर तथा जोधपुर रियासतों की स्थापना में उनका आध्यात्मिक आशीर्वाद प्रमुख माना जाता है। उन्हें “राजघरानों की कुलदेवी” के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर का इतिहास और वास्तुकला

मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने राजपूती शैली में करवाया। मुख्य द्वार: चांदी से मढ़ा,गर्भगृह: संगमरमर से निर्मित,विशेष आकर्षण: सोने का छत्र, चांदी की परातें, और हजारों चूहे जो मंदिर के संरक्षक माने जाते हैं।

चूहों का रहस्य: मंदिर का अनूठा पहलू

इस मंदिर को “चूहों वाला मंदिर” कहा जाता है क्योंकि यहां लगभग 20,000 से अधिक चूहे रहते हैं, जिन्हें ‘काबा’ कहा जाता है। श्रद्धालु इन चूहों को पवित्र मानते हैं, और चूहों के प्रसाद को पाकर खुद को धन्य समझते हैं। यहां के सफेद चूहों को अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि अगर सफेद चूहा दिखाई दे जाए, तो मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। जालीदार छतें इन चूहों की सुरक्षा के लिए लगाई गई हैं, ताकि चील, गिद्ध आदि उन्हें नुकसान न पहुंचा सकें।

करणी माता और उनकी गुफा

मंदिर के गर्भगृह में एक प्राचीन गुफा स्थित है, जहां करणी माता ध्यान करती थीं और अपने ईष्ट की आराधना करती थीं। उनके ज्योतिर्लीन होने के बाद इसी गुफा में उनकी मूर्ति स्थापित की गई और तब से यह मंदिर तीर्थस्थल बन गया।

धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं

  • माना जाता है कि जब किसी देपावत चारण की मृत्यु होती है, तो वह करणी माता के मंदिर में चूहा बनकर जन्म लेता है।

  • श्रद्धालु चूहों को भोजन कराते हैं और यदि चूहे का भोजन उनके द्वारा चखा जाए, तो उसे आशीर्वाद समझा जाता है।

आज भी जीवंत आस्था का केंद्र

नवरात्रों में यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।

  • मंगला आरती और संध्या आरती के समय मंदिर में चूहों की परेड एक विशेष दृश्य होता है।

  • राजस्थान ही नहीं, देश-विदेश से लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।

कैसे पहुंचें करणी माता मंदिर?

  • मंदिर बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर देशनोक स्टेशन से कुछ ही कदम की दूरी पर है।

  • बीकानेर शहर से टैक्सी, जीप या बस द्वारा लगभग 30 मिनट में मंदिर पहुंचा जा सकता है।

भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करणी माता मंदिर दर्शन करना सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना भी है।

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